तो कथा यूँ निकली की सूत जी कहते हैं..की आखिरी अध्याय भी मन लगा कर अगर सुन लिया जाए तो भरसक कल्याण ही होता हैं ...
भीड़ के पिछले लाइन में बैठी इमरती मौसी ओघाती सी जाग गई..अब हाथ में अक्षत दूब लिए सजग हो के बैठ गई ..आखिरी अध्याय पूरा सुनना है आज.....
इमरती मौसी के जिनगी में सत्न्रायण भगवान की पूजा का आलम ऐसा की मुहल्ला टोला जहाँ से भी शंख बजने की आवाज सुनी नही की भाग पड़ी साड़ी सम्भारती..आखिरी अध्याय पर मन का मुराद जो पूरा हो जाए की गारंटी ....मौसी के दुःख की कहानी इतनी पुरानी की की बात अब सांत्वना से ज्यादा हंसने की हो गई थी ..मुहल्ले के बच्चे तक चिढाने लगे अरे मौसी बड़का टोला में पूजा शुरू होने वाला है ..कहो मौसी आज आँख खोले रहू की नाही पूजा मा...मौसी आखिरी अध्याय तक जागत रहिया..तोहार मुराद पूरा होई जाई..सूत जी कहत रहें.....पीछे फब्तियां खिलखिलाहटें .....
चकरघिन्नी सी इमरती मौसी दूब अक्षत चुटकी में पकड़े सच पागल के जैसे भागती रही ..घर वापस आते हहरा कर गिर जाती अपनी खटिया पर ..मटमैले तकिया के नीचे से हाल्फ निकर पहनी एक पीली पड़ गई तस्वीर निकालती कलेजे पे ओढती और आँख बंद कर बडबडाती ..बरसोंसे रो रही आँखों में भी पानी ना कम हुआ .
.इकल्ली पड़ी रहती घर में ..तेल मालिश का काम करती....सभी नवजात को ऐसे हसरत से देखती जैसे उनका मुन्ना हो .....इन बेगानी मुस्कराहट में इमरती मौसी ने अपनी जिंदगी तलाश ली थी ..मुहल्ले के सभी सौरी का काम यही संभालती ..टुकुर मुकुर आँखों से निहाल करते से बच्चे ..मौसी की ममता आसमान ...आँचल में तरह तरह का तेल महकता उबटन से आज ही मली गई नन्ही सी बच्ची की कोमल देह बसी सी होती ..मुठ्ठी भर लाल मिर्चा लेकर कभी ई बच्चा कभी उ बचवा का नजर उतरती मौसी निहाल हुई घुमती रहती मुहल्ला मुहल्ला.......
अकेले घर की दीवारों से टिक कर मौसी कलेंडर में टंगे भगवान् को खूब खरी खोटी सुनाती ..छाती सूख गई ..कलेजा मुंह को आ जाता की कैसे पाँच बरस का बेटा गंगा नहाने गई मौसी के आँख झपकते ही ऐसा ओझिल हुआ की कभी ना दिखा ..आह ..
हवा से तेज भागी रही मौसी ...सौ सौ आँख लगाकर चारो तरफ खोजा शीतला मैया के सीढि पर माथा पटकती रही ..जिंदगी का एकही सहारा है मैया रानी..ऐसा नाही कर सकती......कहते हैं उस शाम मौसी की चीख से डरता सा अँधेरा देर से उतरा..गंगा उदास सी बही.... किसी घर से नही आई लोरी की आवाज ..बच्चे चिहुकते रहे .....
मौसी को बेहोशी की हालत में घर लाया गया ..कुछ दिन बीते ..पर दर्द ना बीता.......जमीन पर लाश सी पड़ी रहती है मौसी की ....
आती है शंख की आवाज..अरे बुढा भागो अक्षत दूब लेकर... पूजा शुरू होवेवाला है...तोहार लरिका मिल जाई ......मौसी के अचरा में तेल महक रहा है मौसी भाग रही है ..और मुन्ना...............................अचरा फैला के मांग रही है मौसी अपना मुन्ना...हथेली में चटचटा रहा सत्नारण पूजा का चरणामृत ...
भीड़ के पिछले लाइन में बैठी इमरती मौसी ओघाती सी जाग गई..अब हाथ में अक्षत दूब लिए सजग हो के बैठ गई ..आखिरी अध्याय पूरा सुनना है आज.....
इमरती मौसी के जिनगी में सत्न्रायण भगवान की पूजा का आलम ऐसा की मुहल्ला टोला जहाँ से भी शंख बजने की आवाज सुनी नही की भाग पड़ी साड़ी सम्भारती..आखिरी अध्याय पर मन का मुराद जो पूरा हो जाए की गारंटी ....मौसी के दुःख की कहानी इतनी पुरानी की की बात अब सांत्वना से ज्यादा हंसने की हो गई थी ..मुहल्ले के बच्चे तक चिढाने लगे अरे मौसी बड़का टोला में पूजा शुरू होने वाला है ..कहो मौसी आज आँख खोले रहू की नाही पूजा मा...मौसी आखिरी अध्याय तक जागत रहिया..तोहार मुराद पूरा होई जाई..सूत जी कहत रहें.....पीछे फब्तियां खिलखिलाहटें .....
चकरघिन्नी सी इमरती मौसी दूब अक्षत चुटकी में पकड़े सच पागल के जैसे भागती रही ..घर वापस आते हहरा कर गिर जाती अपनी खटिया पर ..मटमैले तकिया के नीचे से हाल्फ निकर पहनी एक पीली पड़ गई तस्वीर निकालती कलेजे पे ओढती और आँख बंद कर बडबडाती ..बरसोंसे रो रही आँखों में भी पानी ना कम हुआ .
.इकल्ली पड़ी रहती घर में ..तेल मालिश का काम करती....सभी नवजात को ऐसे हसरत से देखती जैसे उनका मुन्ना हो .....इन बेगानी मुस्कराहट में इमरती मौसी ने अपनी जिंदगी तलाश ली थी ..मुहल्ले के सभी सौरी का काम यही संभालती ..टुकुर मुकुर आँखों से निहाल करते से बच्चे ..मौसी की ममता आसमान ...आँचल में तरह तरह का तेल महकता उबटन से आज ही मली गई नन्ही सी बच्ची की कोमल देह बसी सी होती ..मुठ्ठी भर लाल मिर्चा लेकर कभी ई बच्चा कभी उ बचवा का नजर उतरती मौसी निहाल हुई घुमती रहती मुहल्ला मुहल्ला.......
अकेले घर की दीवारों से टिक कर मौसी कलेंडर में टंगे भगवान् को खूब खरी खोटी सुनाती ..छाती सूख गई ..कलेजा मुंह को आ जाता की कैसे पाँच बरस का बेटा गंगा नहाने गई मौसी के आँख झपकते ही ऐसा ओझिल हुआ की कभी ना दिखा ..आह ..
हवा से तेज भागी रही मौसी ...सौ सौ आँख लगाकर चारो तरफ खोजा शीतला मैया के सीढि पर माथा पटकती रही ..जिंदगी का एकही सहारा है मैया रानी..ऐसा नाही कर सकती......कहते हैं उस शाम मौसी की चीख से डरता सा अँधेरा देर से उतरा..गंगा उदास सी बही.... किसी घर से नही आई लोरी की आवाज ..बच्चे चिहुकते रहे .....
मौसी को बेहोशी की हालत में घर लाया गया ..कुछ दिन बीते ..पर दर्द ना बीता.......जमीन पर लाश सी पड़ी रहती है मौसी की ....
आती है शंख की आवाज..अरे बुढा भागो अक्षत दूब लेकर... पूजा शुरू होवेवाला है...तोहार लरिका मिल जाई ......मौसी के अचरा में तेल महक रहा है मौसी भाग रही है ..और मुन्ना........................