भींगे गत्ते से
बुझे चूल्हे
को हांकती
टकटकी लगाये ताकती
धूवें में आग की आस
जनम जनम से बैठी रही इया
पीढ़े के ऊपर
उभरी किलों से भी बच के निकल
जाती है
धीमी सुलगती लकड़ियों में
आग का होना पहचानती है
हमारी गरम रोटियों में
घी सी चुपड जाने वाली इया
घर की चारदीवारी में चार धाम का पुण्य कमाती
भींगे गत्ते को सुखाती
हमेशा बचाती रहीं
हवा पानी आग माटी
और अपने खूटे में बंधा आकाश ....
बुझे चूल्हे
को हांकती
टकटकी लगाये ताकती
धूवें में आग की आस
जनम जनम से बैठी रही इया
पीढ़े के ऊपर
उभरी किलों से भी बच के निकल
जाती है
धीमी सुलगती लकड़ियों में
आग का होना पहचानती है
हमारी गरम रोटियों में
घी सी चुपड जाने वाली इया
घर की चारदीवारी में चार धाम का पुण्य कमाती
भींगे गत्ते को सुखाती
हमेशा बचाती रहीं
हवा पानी आग माटी
और अपने खूटे में बंधा आकाश ....
vaah... bahut khoob
ReplyDeleteमै जानती हूँ लोगो की हकिकत सभी
Deleteये जुबा है की कुछ भी कहती ही नहीं
इश्क है और इश्क पे जाँ भी निसार
कमबख्त जाँ है की निकलती ही नहीं
http://anusamvedna.blogspot.in/2013/04/blog-post_29.html