त्योहारों की मौसमों की टिकटें नही बंटती सूखे हरे पत्तो का टूटना बिखरना हवाओ का रूठना मान जाना हमे अपने आप में रंग लेता है ..सुबह गुलमोहर के चटक खिले रंग इठलाते से कहते हैं ..देख क्या रहे हो कल नही था आज हूँ जी भर के रहूँगा ..आज ये बात पेड़ की सबसे ऊँची वाली टहनी पर तिरंगा लहराते हुए कहीं है इसने कल पैरों तले मुरझाया सा भी अपनी अकड में चरमराएगा ..फिर आऊंगा देखना ..तुम भी मौसम से लिपट जाते हो हर रंग में ..रंग बेरंग से रास्ते होते है बुद्धू ! मंजिल तो नही ..समय का आना जाना अपने आप को बताता नही अपने आप के साथ बहा ले जाता है हमें ..आज नदी के सूखने से भरी रेत वाली आखें कल झील सी छलक भी जायेंगी ..इन्द्रधनुष को पुरानी डायरी में बंद किया था.. आज बड़ी उमस थी... वो पन्ना खोला की बादल बरस पड़े ..
मौसम की टिकटें होती ना तो मैं बसंत के सारे शो अपने और तुम्हारे लिए बुक कर लेती ..
मौसम की टिकटें होती ना तो मैं बसंत के सारे शो अपने और तुम्हारे लिए बुक कर लेती ..
मौसम की टिकटें होती ना तो मैं बसंत के सारे शो अपने और तुम्हारे लिए बुक कर लेती ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
aapka dhanyvaad
Delete.इन्द्रधनुष को पुरानी डायरी में बंद किया था.. आज बड़ी उमस थी... वो पन्ना खोला की बादल बरस पड़े ..
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