अम्मा ,
तुम्हारी साड़ी बांटी जा रही थी ..अटीदार पटीदार के लोग घर की बहुवें बेटियां ..वो एक बेरंग समय था अलमारी की चाभी एक वृत्त में झूल गई थी दरवाजे खुले थे तुम जा चुकी थी ..सिन्धोरे में कस के बंधा वो लाल धागा ..तुम कहती ये तागपात का धागा है सिन्धोरे में बाँध कर रखते है..अखंड सौभग्य ..सुहागिनों ने सिंदूर लिया वो अमृत कलश सा भरा रहा बाद तक भी ...तुम्हारे दुनियाभर के भगवान् की छोटी बड़ी मूर्तियाँ कलेंडर पर लिखा तुम्हारा दूध का हिसाब सब अपनी जगह पर था ..बस हम अपनी जगह से हिल गए थे .
.रिवाजों के तेरह दिनों में पिताजी ने कभी नही देखा तुम्हारी फोटो की ओर ..५० साल का साथ उनके मन में कितने बसंत की खुशबू छोड़ गया होगा ..तुम उस बड़े फ्रेम से बाहर हो ..आसमान के बुझेतारे भी जल गए थे उस रोज़ जब अंतिम मंत्रोचार से तुम्हें आखिरी विदा कहा था उन २१ पंडितों के ओज से स्वर के साथ तुम सबको अपने अकवर में ले रही थी ..यूँ तो हमारे जाते समय तुम फेर लेती थी खोइछा का चावल पांच बार ये कह कर की आती रहना ..पर इस विदाई हमने नही डाला वो चावल जो वापस कर कहते तुमसे की आना अम्मा ..
लाल माहवार वाले पैर का छापा बाबा की टूटी मड़ई में था आज पिताजी के विशाल घर के दरवाजे को छोड़े जा रहा था ..जिंदगी का सच यही ..पर झूठ ये की नही हो तुम ..तुलसी के पत्तो पे चिपका है पीला सिंदूर ..तुम्हारे लगाये अमरुद पर कोमल पत्तियां निकली हैं कुछ साड़ियों के रंग से भरा है तुम्हारा बक्सा ..त्योहारों पर बोल पड़ते हैं पिताजी आज कुछ ख़ास बनाया जाए ..भाभी के छम छम में गूंजती है तुम्हारी हंसी .बनारस के रिक्शे पर सवार तुम अभी अभी गई हो गंगा की ओर.......आ जाना हाँ ??? सब कह रहे हैं आज मदर्स डे है .....(व्याही लड़कियों का एकांत बड़ा दुसह होता है अम्मा . )
तुम्हारी साड़ी बांटी जा रही थी ..अटीदार पटीदार के लोग घर की बहुवें बेटियां ..वो एक बेरंग समय था अलमारी की चाभी एक वृत्त में झूल गई थी दरवाजे खुले थे तुम जा चुकी थी ..सिन्धोरे में कस के बंधा वो लाल धागा ..तुम कहती ये तागपात का धागा है सिन्धोरे में बाँध कर रखते है..अखंड सौभग्य ..सुहागिनों ने सिंदूर लिया वो अमृत कलश सा भरा रहा बाद तक भी ...तुम्हारे दुनियाभर के भगवान् की छोटी बड़ी मूर्तियाँ कलेंडर पर लिखा तुम्हारा दूध का हिसाब सब अपनी जगह पर था ..बस हम अपनी जगह से हिल गए थे .
.रिवाजों के तेरह दिनों में पिताजी ने कभी नही देखा तुम्हारी फोटो की ओर ..५० साल का साथ उनके मन में कितने बसंत की खुशबू छोड़ गया होगा ..तुम उस बड़े फ्रेम से बाहर हो ..आसमान के बुझेतारे भी जल गए थे उस रोज़ जब अंतिम मंत्रोचार से तुम्हें आखिरी विदा कहा था उन २१ पंडितों के ओज से स्वर के साथ तुम सबको अपने अकवर में ले रही थी ..यूँ तो हमारे जाते समय तुम फेर लेती थी खोइछा का चावल पांच बार ये कह कर की आती रहना ..पर इस विदाई हमने नही डाला वो चावल जो वापस कर कहते तुमसे की आना अम्मा ..
लाल माहवार वाले पैर का छापा बाबा की टूटी मड़ई में था आज पिताजी के विशाल घर के दरवाजे को छोड़े जा रहा था ..जिंदगी का सच यही ..पर झूठ ये की नही हो तुम ..तुलसी के पत्तो पे चिपका है पीला सिंदूर ..तुम्हारे लगाये अमरुद पर कोमल पत्तियां निकली हैं कुछ साड़ियों के रंग से भरा है तुम्हारा बक्सा ..त्योहारों पर बोल पड़ते हैं पिताजी आज कुछ ख़ास बनाया जाए ..भाभी के छम छम में गूंजती है तुम्हारी हंसी .बनारस के रिक्शे पर सवार तुम अभी अभी गई हो गंगा की ओर.......आ जाना हाँ ??? सब कह रहे हैं आज मदर्स डे है .....(व्याही लड़कियों का एकांत बड़ा दुसह होता है अम्मा . )
तुम्हारा दूध का हिसाब सब अपनी जगह पर था ..बस हम अपनी जगह से हिल गए थे
ReplyDeleteबेहतरीन मार्मिक प्रस्तुति
dhnyavaad raajesh ji
Deletedon`t hv words.....my feelings r enough 4 dis
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