गाँव में पुआल
बचपन ..धमाल
पुवाल वाला घर
लुटे हुए आम ..गढ़ही में गिरा ..सुग्गा का खाया
पत्थर से तोडा की निहोरा से मिला
पकाए जाते थे
पर अक्सर पकने के पहले
खाए जाते थे
अक्सर पुवाल घर में मिलती थी
नैकी दुल्हल की लाल चूड़ियाँ टूटी हुई
और बिखरी होती थी
दबी खिलखिलाहटें
पुवाल से हम बनाते थे
दाढ़ी मूंछ हनुमान की पूँछ
दुल्हे की मौरी
कनिया की चूड़ी
पुवाल से भरी बैलगाड़ी पर
हम चढ़के गाते थे
हिंदी सिनेमा का गीत
दुनियां में हम आये है तो .....
उस घर के छोटे झरोखे से
दुलहिनें देखती थी हरा भरा खेत
उनके नैहर जाने वाली पगडण्डी
सत्ती माता का लाल पताका और धूल वाला बवंडर
अचानक पुवाल घर को छोड़कर
हम पक्के रस्ते से शहर आ गए
आज भी यादों की पुवाल में पकता है
बतसवा आम ..चटकती ही मुस्कराती चूड़ी
सिनेमा के गाने बदल गए गाँव भी बदल गया बाबा
पर बादल बरसते हैं तो माटी की महक से हुलस जाता है मन
नन्हके पागल ने लगा दी है बचे हुए पुवाल में आग
शहर के आसमान पर वही गाँव वाला बादल छाया है बाबा
अभी अभी हम दोनों की आँख मिली
और बरस पड़े .....
बचपन ..धमाल
पुवाल वाला घर
लुटे हुए आम ..गढ़ही में गिरा ..सुग्गा का खाया
पत्थर से तोडा की निहोरा से मिला
पकाए जाते थे
पर अक्सर पकने के पहले
खाए जाते थे
अक्सर पुवाल घर में मिलती थी
नैकी दुल्हल की लाल चूड़ियाँ टूटी हुई
और बिखरी होती थी
दबी खिलखिलाहटें
पुवाल से हम बनाते थे
दाढ़ी मूंछ हनुमान की पूँछ
दुल्हे की मौरी
कनिया की चूड़ी
पुवाल से भरी बैलगाड़ी पर
हम चढ़के गाते थे
हिंदी सिनेमा का गीत
दुनियां में हम आये है तो .....
उस घर के छोटे झरोखे से
दुलहिनें देखती थी हरा भरा खेत
उनके नैहर जाने वाली पगडण्डी
सत्ती माता का लाल पताका और धूल वाला बवंडर
अचानक पुवाल घर को छोड़कर
हम पक्के रस्ते से शहर आ गए
आज भी यादों की पुवाल में पकता है
बतसवा आम ..चटकती ही मुस्कराती चूड़ी
सिनेमा के गाने बदल गए गाँव भी बदल गया बाबा
पर बादल बरसते हैं तो माटी की महक से हुलस जाता है मन
नन्हके पागल ने लगा दी है बचे हुए पुवाल में आग
शहर के आसमान पर वही गाँव वाला बादल छाया है बाबा
अभी अभी हम दोनों की आँख मिली
और बरस पड़े .....
सच में गाँव का रंग तो, कुछ अलग ही होता है। सुन्दर कविता। आभार।
ReplyDeleteक्या आपको भी आते हैं इस तरह के ईनामी एसएमएस!!
Knowledgeable-World
Goav ki yad dilati behatarin kavita...
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