Saturday, April 13, 2013

एक लेखक का एकांत - 1





तुम हमे छोड़ कर नही जा सकती .....

खाली पड़ी देंह पर विलाप की सफ़ेद चादर परत दर परत पड़ती जाती है ...एक समय ऐसा भी की वियोग में हम रोते नही ..घर की सबसे सूनी 

दिवार की आग तापते है ..चौखट के आर पार होते दिन रात के सिरे पकड़ने की कोशिश करते है ..हाथ खाली ...अपने सबसे रंगीन कपड़ों को 

उदासी में सान कर घर के परदे लगा देते हैं ...

शोक में सबके अन्दर एक चीख जिन्दा है पर सब उसे मारते है ...सबसे दुखते कंधे पर हाथ धरते ही एक दर्द कच्चे मटके सा फूट पड़ता है 

...वेदना से दुखती है धरती की छाती ...आसमान की बाहों में सिसकती है आधी रात की असहाय देंह ...
तुम क्यों चली गई के समवेत स्वर की लकड़ी पर बिन कुछ कहे जल रही हो तुम ....

7 comments:

  1. वेदना से दुखती है धरती की छाती ...आसमान की बाहों में सिसकती है आधी रात की असहाय देंह ...
    तुम क्यों चली गई के समवेत स्वर की लकड़ी पर बिन कुछ कहे जल रही हो तुम ....

    संवेदना की असीम गहराइयों से अनुभूति की अनन्त उड़ान तक ... बहुत कुछ समेत कर रख दिया है चंद पंक्तियों मे ...

    ब्लॉग जगत मे आपका स्वागत है

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  2. .अपने सबसे रंगीन कपड़ों को

    उदासी में सान कर घर के परदे लगा देते हैं ...आपकी कलम का जादू यूंही बना रहे …।बहुत बधाई …और ब्लॉग के लिये शुभकामनाएँ भी स्वीकार करें

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  3. आह............
    संवेदनाओं की इतनी कोमल अभिव्यक्ति...
    आसान नहीं!!!

    बहुत कुछ अच्छा पढने की उम्मीद....
    स्वागत आपका.

    अनु

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  4. शानदार अभिव्यक्ति

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  5. कुछ कमी -सी है / अगर बुरा न माने तो

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