दस बरस की थी मैं ..हम किराए के मकान में रहते थे ..मुहल्ला जैतपुरा वाराणसी ..हम जिस घर में थे उसके छत पर एक टूटी बरसाती थी ..वही रहती थी सुखदेव की मौसी .हाँ वही खोमचेवाली.जो रोज़ सुबह शाम अपने कांपते सर पर पूरी दूकान उठाती और चली जाती लड़कियों के स्कूल के पास ..जहाँ बिक जाते उनके बनाये सारे खट्टे मीठे आलू ..मूंगफली ..या फिर रामदाने का लड्डू .
.मौसी अपने एकांत की दोपहरी में मुझे मेरे घर से इशारे से बुला ले जाती ..कहती ..ए पिनका (पिंकी) एक ठो काम रहा ..मुझे आज तक समझ नही आया मेरे घर में मेरे बड़े भाई बहन मेरी अम्मा को भी उन्होंने अपने उस काम में क्यों ना सामिल किया ..
मेरे जाते वो मुझे एक पीढ़ा देती अपने एक टूटे मोढ़े पर बैठ जात्ती और धीरे से एक पोस्टकार्ड निकालती मेरी ओर ..हमरे भैया के चिठ्ठी लिखे के रहा ..मेरे हाथ में एक पेन थमा देती अपने एक दफती पर पोस्टकार्ड रख नजदीक खिसक आती ..मैंने जिंदगी में तबतक की किसी को चिठ्ठी नही लिखी थी ..हाँ चिठ्ठियाँ पढ़ी थी .
.मैंने आज जाना ..ऐसा करते उस ख़ास समय में मैं बहुत बड़ी हो जाती ..इतनी की तीस बरस पहले हुई सुखदेव की मौसी की सफ़ेद साडी का दर्द जान सकूँ ..इतनी की कौनो लैका न भय तो घर से भगा दिहिन की बेचारगी समझ सकू ..मिर्जापुर से दूर किसी गाँव से बोझ मान कर निकाली गई मौसी पीछे बीस साल से अपने सर में जो खोमचे का बोझ उठाती फिर रही है वो अपने जरुरत मंद भाई को हर महीने चिठ्ठी में क्या लिखवाना चाहती ..और मैले फटे रूपये को अपनी गाँठ से निकाल क्यों भेज देती .अपना अपमान कैसे भूल पाई .
.क्या लिखना है मौसी ?के सवाल पर मौसी कहती ...अरे यही की भैया के मालुम की इहाँ सब कुशल मंगल है ..इसके बाद वो चुप हो जाती ..उनकी आँखों से टपकते आंसू बोलते और मेरी कलम ..मैं उनकी झुर्रियों के हर तह में जाकर उनके वो सारे सवाल खोज लाती जो वो पूछना चाहती जो वो कहना चाहती ..
कैसे हो भैया ..घर में कौन कौन है ..भतीजा कितना बड़ा हो गया ..भाभी का हाल चाल ..घर दुवार सखियाँ सहेली ..मौसी को पता नही होता मैंने चिठ्ठी में क्या क्या लिख दिया ..वो मेरी अंजुरी रामदाने के लड्डू से भर देती ..मैं अपने अन्दर एक खाली आसमान लेकर वापस आ जाती ..जहाँ बादलों की आवाजाही कोई नही देखता ..
मौसी की जबाबी चिठ्ठियों में उन सवालों के जबाब मिलने लगते जो वो जानना चाहती ..वो आकर मेरा माथा चूम लेती ..फिर एक दोपहर के एकांत में मैं मौसी की जिंदगी जीने उस पीढ़े पर बैठ जाती ..औरत का मायका बड़ा मजबूत होना चाहिए का सच लिखती हुई मैं दस बरस की उमर में बार बार बुजुर्ग हो जाती .
.सलवटों में छुपे दर्द का नाता बड़ा पुराना है ..तुम पहचानते हो न मुझे ?
.मौसी अपने एकांत की दोपहरी में मुझे मेरे घर से इशारे से बुला ले जाती ..कहती ..ए पिनका (पिंकी) एक ठो काम रहा ..मुझे आज तक समझ नही आया मेरे घर में मेरे बड़े भाई बहन मेरी अम्मा को भी उन्होंने अपने उस काम में क्यों ना सामिल किया ..
मेरे जाते वो मुझे एक पीढ़ा देती अपने एक टूटे मोढ़े पर बैठ जात्ती और धीरे से एक पोस्टकार्ड निकालती मेरी ओर ..हमरे भैया के चिठ्ठी लिखे के रहा ..मेरे हाथ में एक पेन थमा देती अपने एक दफती पर पोस्टकार्ड रख नजदीक खिसक आती ..मैंने जिंदगी में तबतक की किसी को चिठ्ठी नही लिखी थी ..हाँ चिठ्ठियाँ पढ़ी थी .
.मैंने आज जाना ..ऐसा करते उस ख़ास समय में मैं बहुत बड़ी हो जाती ..इतनी की तीस बरस पहले हुई सुखदेव की मौसी की सफ़ेद साडी का दर्द जान सकूँ ..इतनी की कौनो लैका न भय तो घर से भगा दिहिन की बेचारगी समझ सकू ..मिर्जापुर से दूर किसी गाँव से बोझ मान कर निकाली गई मौसी पीछे बीस साल से अपने सर में जो खोमचे का बोझ उठाती फिर रही है वो अपने जरुरत मंद भाई को हर महीने चिठ्ठी में क्या लिखवाना चाहती ..और मैले फटे रूपये को अपनी गाँठ से निकाल क्यों भेज देती .अपना अपमान कैसे भूल पाई .
.क्या लिखना है मौसी ?के सवाल पर मौसी कहती ...अरे यही की भैया के मालुम की इहाँ सब कुशल मंगल है ..इसके बाद वो चुप हो जाती ..उनकी आँखों से टपकते आंसू बोलते और मेरी कलम ..मैं उनकी झुर्रियों के हर तह में जाकर उनके वो सारे सवाल खोज लाती जो वो पूछना चाहती जो वो कहना चाहती ..
कैसे हो भैया ..घर में कौन कौन है ..भतीजा कितना बड़ा हो गया ..भाभी का हाल चाल ..घर दुवार सखियाँ सहेली ..मौसी को पता नही होता मैंने चिठ्ठी में क्या क्या लिख दिया ..वो मेरी अंजुरी रामदाने के लड्डू से भर देती ..मैं अपने अन्दर एक खाली आसमान लेकर वापस आ जाती ..जहाँ बादलों की आवाजाही कोई नही देखता ..
मौसी की जबाबी चिठ्ठियों में उन सवालों के जबाब मिलने लगते जो वो जानना चाहती ..वो आकर मेरा माथा चूम लेती ..फिर एक दोपहर के एकांत में मैं मौसी की जिंदगी जीने उस पीढ़े पर बैठ जाती ..औरत का मायका बड़ा मजबूत होना चाहिए का सच लिखती हुई मैं दस बरस की उमर में बार बार बुजुर्ग हो जाती .
.सलवटों में छुपे दर्द का नाता बड़ा पुराना है ..तुम पहचानते हो न मुझे ?
मार्मिक...
ReplyDeleteshukriya
Deleteलाजवाब.
ReplyDeletedhanyavaad
Deleteउनकी आँखों से टपकते आंसू बोलते और मेरी कलम ..मैं उनकी झुर्रियों के हर तह में जाकर उनके वो सारे सवाल खोज लाती जो वो पूछना चाहती जो वो कहना चाहती ..
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