Thursday, April 18, 2013

मज़बूरी ..एक रंग ऐसा भी


लालटेन पेट्रोमेक्स के
पिले उजले रोशनी में
लड़की लट्टू की तरह
नाच रही है

तेज महक का पावडर
लाल परांदे में
उलझ सुलझ रही
आप ही आप

चोली पर उड़ता गिरता दुपट्टा
"रेशमी सलवार कुरता जाली का .....
पेड़ के पंछी दुबके हैं
बसवारी सुन्न सन्नाटा
१० ५० के नोट के साथ
जवान आवाजे हवा में
झूम रहीं है

सिवान जिला का मुन्नी बैंड बड़ा फेमस है
बामहन टोली तुरह पट्टी मिसरौरीसे से  जमा हुए हैं लोग

नाच बैंड की धुन पर पगड़ी हवा में
लहरा कर नचनियां का दुपट्टा अपने मुह पर ओढ़कर
किसन चाचा भूल रहे हैं अपना अकेलापन
बंसी भैया के जवान बहन की शादी
सूखे से बंजर पड़ी जमीं
जवान बुवा का विधवा होना
टूटे खपरैल की मरम्मत
सब दुःख पानी ..जरा सी देर को जी रहे हैं सब

उधर नाच एकदम तेजी पर ..आँखों से तुमको शराबी बना दूँ ..
लड़की थक के चूर ..सवेरा होने को है ..नाच ख़तम
पावडर की महक ख़तम सूखी लाली ..लड़की के शरीर पर
रेंगती है हजारों बिच्छू सी उंगलियाँ ..उबकाई आती है

गाँव वालों के दुखो के गहरे कुवों में बिन पानी के झूल जाती है
खाली बाल्टी ..मन में तेज नाचती है रात वाली लड़की
सबकी अपनी अपनी मज़बूरी ..जीने का सहारा

रात भर जली लालटेन के शीशे काले पड गए है अब ...

2 comments:

  1. रात भर जली लालटेन के शीशे काले पड गए है अब ...

    वाह ... पूरी कविता एक लाइन मे सिमट आई है..

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