Monday, June 17, 2013

तुम्हारे लिए भाई

उदास हो ?पता चल गया
तुम्हारी आवाज का बेगानापन
सब बता गया मुझे

ये छोटे भाई का उदास होना बड़ा अखरता है
सबके हिस्से का प्यार लेकर बड़े होते हैं ये
इनके जनम का महिना और तारिख जीतनी याद नही
उतना याद है उस साल देश दुनियां में होने वाली हलचल
घर में बातें ही ऐसे होती रहती

जिस बरस पैदा हुए थे तुम घर की आमदनी बढ़ी
रागिनी बुवा की शादी का साल था
सात साल बाद उस बरस खूब बारिश हुई थी
बाबा की पछिम टोला की बंजर जमीं पर धान की ओढ़नी फैली थी
अरे हाँ उसी साल घर में आई थी ना टी वी
जैसे तुम्हारे नही होने से रह जाती ये सारी घटनाएँ
वो आगे वाला नया कमरा भी उसी साल बना था भाई
अग्रेजी स्कूल में गये तुम सबसे महंगा बैग था तुम्हारा
तुम्हारे काले जूते को चमकाते और.. वो मांग निकाल कर तुम्हारा बाल बनाते हम
तुम्हारी धूरी पर तो थी घर की खुशियाँ

दुनियां कितनी भी बेरहम हो जाए
तुम्हारे लिए सबके प्यार की छाँव है ठौर है
सर्दियाँ छू ना पाए तुम्हें अम्मा ने तुम्हारे लिए
गरम कपड़ों में धूप सहेजी
घर के चौरे में हरियाली ..अपने आँखों में नदी
और अपने आँचल में अकूत प्यार

मायूसी और उदासी के बीच ही वो प्यार के मोती चमकते है
अब मुस्करा भी दो ..चलो उस तालाब के पास चलो
मैंने कागज की नाव बनानी सीख ली है
सच तुम्हारे रखे पत्थर का भी वजन उठा कर चलेगी
मैं बहती धारा में दूर बह जाउंगी पर जब पिछे देखूं तो तुम
ताली बजाते हँसते हुए दिखना..मंजूर ना ?
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Friday, June 14, 2013

गाँव के रंग ...

गाँव में पुआल 
बचपन ..धमाल 

पुवाल वाला घर 
लुटे हुए आम ..गढ़ही में गिरा ..सुग्गा का खाया 
पत्थर से तोडा की निहोरा से मिला 
पकाए जाते थे 
पर अक्सर पकने के पहले 
खाए जाते थे 

अक्सर पुवाल घर में मिलती थी
नैकी दुल्हल की लाल चूड़ियाँ टूटी हुई
और बिखरी होती थी
दबी खिलखिलाहटें

पुवाल से हम बनाते थे
दाढ़ी मूंछ हनुमान की पूँछ
दुल्हे की मौरी
कनिया की चूड़ी

पुवाल से भरी बैलगाड़ी पर
हम चढ़के गाते थे
हिंदी सिनेमा का गीत
दुनियां में हम आये है तो .....

उस घर के छोटे झरोखे से
दुलहिनें देखती थी हरा भरा खेत
उनके नैहर जाने वाली पगडण्डी
सत्ती माता का लाल पताका और धूल वाला बवंडर

अचानक पुवाल घर को छोड़कर
हम पक्के रस्ते से शहर आ गए

आज भी यादों की पुवाल में पकता है
बतसवा आम ..चटकती ही मुस्कराती चूड़ी
सिनेमा के गाने बदल गए गाँव भी बदल गया बाबा
पर बादल बरसते हैं तो माटी की महक से हुलस जाता है मन
नन्हके पागल ने लगा दी है बचे हुए पुवाल में आग

शहर के आसमान पर वही गाँव वाला बादल छाया है बाबा
अभी अभी हम दोनों की आँख मिली
और बरस पड़े .....

Saturday, June 8, 2013

आदमखोर

एक ऐसा राक्षस 
जो शरीर के बोटी बोटी से 
अपना हिस्सा लेता 

जो बेटी की छाती पर चढ़ कर
छिन लेता उसके पसीने की कमाई 

जो बेटे को बात बेबात लात मारता 
उसके जरा से हाथ में पकडाता कुदाल फावड़ा 

जो गालियों को ऐसे निकालता
जैसे साँसें हों उसकी

वो जो बंद कमरे में बलात्कार करता
अपने पिलिया से पिडित औरत के साथ

वो जिसके कपड़ो से गंध आती
वहशीपने की

जो रातों की रगें दुखाता
जो नदियों को खारा कर देता

वो अपने आदमी होने पर अकड़ता

इंसानों की बस्ती में कुछ आदम खोर आदमी भी हैं
और सुना तेजी से बढ़ रही है इनकी संख्या .......