Thursday, January 23, 2014

बाबा का गमछा

बाबा बाहर की चौकी पर ध्यान रमा कर बैठते ..मुझे पता था किसी चौपाई पर नही ठहर रहा है उनका मन ..घर में क्या बन रहा..कौन आया..बातें क्या हो रही हैं...चाय बनी थी क्या फिर से...वो इन बातों का जबाब चाहते ..मैं हूँ ना बाबा बन की तितली.इधर उधर सारी बातों का सामान्य गूढ़ पिटारा..मेरे हाथ हमेशा मिटटी से भरे होते..और बाबा की आँख इंतजार से..मेरे पास जाते ही अपने गमछे का एक हिस्सा चौकी पर मेरे लिए बिछा देते ..

अपनी धोती के कोने से मेरा हाथ पोछते फिर अपनी आँख ..का बाबा ?? एगो गीत गइबे...मैया मोरी मैं नही माखन खायो ..अभिनय के साथ ..बाबा विभोर हो मेरा नादान अभिनय देखते..मैं बताती बाबा जब लाल नीला लाइट पड़ता है ना तब कान्हा का मुकुट खूब चमकता है..स्कूल के स्टेज की बात...पर बिना लाइट बाबा की आँख चमकती..उनके गमछे को कमर में बाँध एक छोटा सा लकड़ी उसमे खोंस जब मैं उनकी तरफ फेंकती..ये लो अपनी लकुटी कमरिया..तब बाबा हाथ फैला देते..ऐन्गा ना रिसियाए के बाबू....अब मुस्कराती चौकी पर बाबा ताली बजा कर मेरे गाने को कसम से बेसुरा गाते..बाबा ऐसे नही ऐसे नही...

गमछे ने बाबा का खूब साथ निभाया..कभी बिस्तर बना कभी पगड़ी..कभी कमर में बंधा कभी सर पर..कभी दाना से भरा कभी सब्जी से कभी हम सोये मिलते उसके नीचे ऊपर बाबा की थपकी..गाँव की मिटटी धीरे धीरे झर चुकी थी ..अब कुछ कहानियां बची थी उनके जेहन में वो भी रूठी सी रास्ता विषय सब भूल जाती ..

हमारे बुजर्गों के पास उनके अनुभव की अकूत सम्पत्ति है ..उनकी कहानियां इस लिए भूल जाती है रास्ता की हम सुनते ही नही कभी बैठकर ..की समय नही.बकबक कौन सुने..वही वही बात...हम भी उसी पटरी से अपने उसी उम्र की गाडी से गुजरेंगे..हवा से कोई पुराना गमछा जो पास उड़ आये तो समेट लेना..उसमे कहानियां हैं.भजन है..बाबा की ताली की आवाज है..मिटटी की महक है..और उनकी आँख की रौशनी है..जो धीरे धीरे बहती थी..जिसे बाबा छुप कर पोंछ लेते थे ....

.एकांत में बाबा ने सुनाई थी घर खेत छप्पर अटीदार पाटीदार की कहानी...आज अपने एकांत के पन्नो पर लिखते हुए समझा मैंने.....
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