Wednesday, November 6, 2013

लेखक का एकांत

अजीब है ना। ।आप खुश हैं कि अचनाक ना जाने कौन से रास्तोँ से चलता हुआ आपका अतीत अचनाक कोहनी मार देता है। .भूल गई क्या ?? हम भी हैं। अब एकांत यूँ भी नही कि आपको एक उदास बुझा हुआ दीया थमा जाए। .पर जो बुझ ही गया मन तो अपने आप को क्यों झुठलाएं अब ऐसा ही है।

और देखो ना फुलझड़ियों से झरने वाला वो चमकदार फूल भी तो अँधेरी सलाखों में कैद हो जाता है तो क्या बचा हाथ में गरमाई हुई काली बेजान तीली। क़ल कि पहनी साड़ी कि तहोँ में यादें सहेज गई। अब रखी रहेगे अलमारी के एक कोने में अगली बार जब पहनेंगे बरबस ही बोल देगा मन पिछली दीवाली को पहनी थी ना। हमे चलते रहना है आगे ..अपनी सोच के साथ नए रास्तों के साथ ..रीती रिवाजों को भी जरा मरा फेर बदल कर निभाते रहना है अतीत कि जुगाली करते रहो कुछ नये स्वाद के साथ बातें याद आती रहती हैं।

कल रात काली थी कितनी ना कि इतनी रोशनी हुई पर मन पर अम्मा छाई रही। वो रात वाला काजल याद आता रहा ..अम्मा कि चुटकियां याद आती रही.. बिना कपूर के काजल के भी लगा आँखे जल रही हैं ..सुबह आईने में आँखें कोरी ही थी ..

अम्मा अब ऐसा तो नही कि अँधेरा साथ ले गई आप हमे बस इन उजालों कि फुलझड़ी थमा दी लो मुस्कराते रहो कुछ बादल पीछे छोड़ गई काला सा जरा सी आँखो में भी भर भर के छायें रहते हैं ...सभी भाई बहनो ने एक दूसरे से एक बात छुपाई कि अम्मा याद आ रही हैं पर सब जान गये और ..पिताजी तुम्हारे कमरे के शुन्य में चुपचाप पुराने हाफ स्वेटर कि वही पुरानी बर्फी वाली डिजाइन को देख कर मीठे हो रहे थे

दीवाली थी न मुह मीठा करना जरुरी है

आसमान के रास्ते हमारे शहर कि सबसे बड़ी खिड़की से मेरी आवाज भागती हुई तुमतक पहुचना चाह रही थी

आपकी आवाज भी आई थी पलट के। खूब घर परिवार सुख से भरल रहे सदा सौभ्यावती का सिंदूर भी चमका हमारी मांग में हाँ हाँ पुराने गहने भी पहने थे हमने तो याद का और तुम्हारा रिशता भी तो ऐसा ही है

पटाखो के तेज़ आवाजों के साथ अपने बच्चोँ का कुनमुनाना तुम देख और सुन सकती हो

बड़ी जिम्मेवारी वाली दीवाली थी जब हम जान गये हैं कि अपनी अंगुली को आग से दीये से कैसे बचाना है अब तुम नही ना हम सब सिख गए

एकांत में टीम टीम करता दीया और मन के फर्श पर तेल सी फैली तुम्हारी याद