Monday, August 26, 2013

बहनें ...दो कविता



कुछ कतरनों में हमनें भी सहेजी है 
नैहर की थाती 

हमारे बक्से के तले में बिछी
अम्मा की पुरानी साड़ी 
उसके नीचे रखी है पिताजी की वो तमाम चिठ्ठियाँ 
जो शादी के ठीक बाद हर हफ्ते लिखी थी 

दो तीन चादी का सिक्का जिसपर बने भगवान् की सूरत उतनी नही उभरती 
जीतनी उस पल की जब अपनी पहली कमाई से खरीद कर 
भाई ने धीरे से हाथ में पकड़ा दिया ये कह कर
बस इतना ही अभी

तुम्हें नही पता तुम्हारा इतना ही कितना बड़ा होता है की
भर जाती है हमारी तिजोरी

की अकड़ते रहते हैं हम अपने समृध्ध घर में ये कहते
भैया ने बोला ये दिला देंगे वो दिला देंगे

हद तो ये भी की भाभी के दिए एक मुठ्ठी अनाज को ही
अपने घरों के बड़े छोटे डिब्बों में डालते ये कह कर की जब तक
नैहर का चावल साथ है ना
हमारे घर में किसी चीज़ की कमी नही ...

किसी को ये सुन कर बुरा लगता है की
परवाह किये बगैर

पुरानी ब्लैक न वाइट फोटो में हमारे साथ साथ वाली फोटो है ना
सच वो समय की सबसे रगीन यादों के दिन थे

हाँ पर अम्मा की गोद में तुम बैठे हो
हम आस पास खड़े मुस्करा रहे हैं
हमे हमेशा तैयार जो रखा गया दूर भेजने के लिए

अच्छा वो मोटे काजल और नहाने वाली तुम्हारी फोटो देखकर
तुम्हें चिढाने में कितना मजा आता
तुम्हारी सबसे ज्यादा फोटो है की शिकायत कभी नही की हमने
हमारे लिए तुम्हेई सबसे ज्यादा रहे हमेशा

अब तुम बड़े हो गये हो
तुम्हारे चौड़े कंधे और चौड़ी छाती में
हम चिपक जाती हैं तितलयों की तरह
एक रंग छोड़कर उड़ जाना है दूर देश

कभी आ जाओ न अचानक ..बिना दस्तक दरवाजा खोल दूंगी ..तुम्हारी आहटों को जीया हैं हमने .... 


आज आ जाओ ...आ सको तो ...

२ 


बहनें हमेशा हार जाती है 
की खुश हो जाओ तुम 
जबकि उन्हें पता है जीत सकती हैं वो भी 

अजीब होती है... बड़ी हो जाती है तुमसे पहले 
अपने फ्रॉक से पोछ देती है तुम्हारे पानी का गिलास 
तुम पढ़ रहे हो ..भींग जाता है तुम्हारा हाथ 
पन्ने चिपक जाते हैं 

तुम कितनी भी रात घर वापस आओ 
ये जागती मिलती हैं
दबे पाँव रखती है तुम्हारा खाना
तुम्हारे बिस्तर पर डाल देती हैं आज का धुला चादर
इशारे से बताती हैं ..अम्मा पूछ रही थी तुम्हें
काहे जल्दी नही आ जाते ..परेशान रहते हैं सब

बहनें तुम्हारी जासूस होती हैं ..बड़ी प्यारी एजेंट भी
माँ भी ..की इनकी गोद में सर धरे सुस्ता लो पल भर

बहनें तुम्हारे आँगन की तुलसी होती हैं
तुम्हारे क्यारी का मोंगरा
बड़े गेट के पास वाली रातरानी
आँगन के उपेक्षित मुंडेर की चिड़िया होती है भैया
पुराने दाने चुगते हुए तुम्हारे नए घरों का आशीष देती हैं

हमारी आँखों के कोर पर ठहरे रहते हो तुम
हम जतन से रखती हैं तुम्हें

बहनें ऐसी ही होती हैं ....