Monday, April 15, 2013

एक लेखक का एकांत _3


मुझे अकेला छोड़ दो ....उस अकेलेपन में मेरी यादें पिजती है ..बड़े कोमल से फाहे उड़ते है आँखे एक नर्म

बिस्तर पर सो सी जाती हैं ..मुझे अकेला छोड़ दो की पहचान कर लूँ मैं अपनी अपने साथ ..आईने के उलझे

बालों को सुलझा लूँ ..पर घात लगी यादों का क्या करूँ ..किसी न किसी रास्ते आ कर टकरा जाती है ..मेरे आहत

होते मन पर तुम जाने अनजाने ही कीलें ठोकते हो ..मेरे दर्द को अकेला रहने दो ..वो रिसने के रास्ते तलाश

कर लेंगे ..मुस्कराहटों में दबी चीख मुझे सोने नही देती .....


सबके पास एक उदास खबर है ..सबने मुस्कराहट को कहीं गाड़ रखा है ..सब परेशां है ..वजहें अलग अलग

सबकी ...आप प्रेम लिखना चाहते है ..करना चाहते हैं पर धमाको के चिथड़े आपकी आँखों में लटके दिखते है ...

धीरे से दोस्त धोखा दे जाता है ..रेजकारी से आप छन छन कर बिखर जाते हो ...अब सुबह है ..टूट गए घोसलों

को देखकर गौरैया आवाजें कर रही है ...हमे दर्द सुनाई दे रहा है ..संवेदनशीलता हमे कई बार चैन लेने नही देती ..
आसमान का बदलता रंग देख कर भी दिल घबराता है ..ठीक है सब चलता है के तर्ज पर ..चलो कर लेते है

प्यार गा लेते है कोई गीत ..अपने को ठगना है ..अभी अभी आपको छोड़ कर गया दोस्त आपको जाने अनजाने

ठग गया ..अफ़सोस ....दोस्त होने की कोई शर्त नही होती ...अब जो मिला जैसा मिला ..खिलखिलाहट को

माचिस की डिब्बी में बंद कर दो ..और घिसते रहो तीलियाँ ...समन्दर जब उफन रहा हो ..तब उससे तेज

आवाज में चीख कर बोलो ..मुझे हंसने की वजह दो .....और समन्दर धीरे से आपके हाथ में वो बचपन वाली

नांव रख दे ..अब यहाँ से मुस्कराते हैं .

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