Wednesday, February 5, 2014

कमाल की औरतें हैं

.... औरतें भागती गाड़ियों से तेज भागती है 
तेजी से पीछे की ओर भाग रहे पेड़ 
इनके छूट रहे सपनें हैं 
धुंधलाते से पास बुलाते से सर झुका पीछे चले जाते से 
ये हाथ नही बढाती पकड़ने के लिए 
आँखों में भर लेती है जितने समा सकें उतने 

ये भागती हिलती कांपती सी चलती गाडी में ..जैसे परिस्थितियों में जीवन की 

नीकाल लेती है दूध की बोतल ..खंखालती है 
दो चम्मच दूध और आधा चीनी का प्रमाण याद रखती है
गरम ठंढा पानी मिला कर बना लेती है दूध
दूध पिलाते बच्चे को गोद से चिपका ये देख लेती है बाहर भागते से पेड़
इनकी आँखों के कोर भींग जाते हैं फिर सूख भी जाते है झट से

ये सजग सी झटक देती है डोलची पर चढ़ा कीड़ा
भगाती है भिनभिनाती मक्खी मंडराता मछ्छर
तुम्हारी उस नींद वाली मुस्कान के लिए
ये खड़ी रहती है एक पैर पर

तुम्हारी आँख झपकते ही ये धो आती आती है हाथ मुंह
मांज आती है दांत खंघाल आती है दूध की बोतल
निपटा आती है अपने दैनिक कार्य
इन जरा से क्षणों में ये अपनी आँख और अपना आँचल तुम्हारे पास ही छोड़ आती हैं

ये अँधेरे बैग में अपना जादुई हाथ डाल
निकाल लेती है दवाई की पुडिया तुम्हारा झुनझुना
पति के जरुरी कागज़ यात्रा की टिकिट
जिसमे इनका नाम सबसे नीचे दर्ज है

अँधेरी रात में जब निश्चिन्त सो रहे हो तुम
इनकी गोद का बच्चा मुस्काता सा चूस रहा है अपना अंगूठा
ये आँख फाड़ कर बाहर के अँधेरे को टटोलती हैं
जरा सी हथेली बाहर कर बारिश को पकड़ती है
भागते पेड़ों पर टंगे अपने सपनों को झूल जाता देखती हैं
ये चिहुकती हैं बडबडाती है अपने खुले बाल को कस कर बांधती है
तेज भाग रही गाडी की बर्थ नम्बर ५३ की औरत

सारी रात सुखाती रही बच्चे की लंगोट नैपकिन खिडकियों पर बाँध बाँध कर
भागते रहे हरे पेड़ लटक कर झूल गए सपनों की चीख बची रही आँखों में
भींगते आंचल का कोर सूख कर भी नही सूखता
और तुम कहते हो की कमाल की औरतें हैं
ना सोती है ना न सोने देती हैं
रात भर ना जाने क्या क्या खटपटाती हैं ...............

1 comment:

  1. और फिर भी यह कहलाती हैं हाउस वाइफ ...

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