Saturday, October 12, 2013

मिलना बिछड़ना कुछ नही होता ....

रास्ते वही होते हैं 
कोई आता है हमारी ओर
कोई बिछड़ जाता है 

खाली भरम 
सारे रास्ते भाग रहे हैं 
तुम्हें इधर मुझे उधर 
पहुचाने के होड़ में 

हमारे मिलने के आभास भर से 
शहर में कुछ कुछ दूर पर बिछी है हरे घास वाली बगिया
झूठा ही सही पानी का रंगीन फुहार भी
झलमलाता है हमारे लिए

उस चौक का पुलिस वाला देखो ना कितनी बार
रोक देता है गाड़ियों का काफिला की हम
पार हो जाएँ

कितनी ही बार वो लाल फूल बेचने वाला बच्चा
तुहें थमा देता है
महकते फूलों का गुच्छा तुम मुस्कराते हो
लाल फूलों में मेरे होठ छूते हुए

देखा अभी अभी मिले हम ...

ठंठे पानी के छीटें में भी
मैं अपने रुमाल में बूंद बूंद समों लेती हूँ तुम्हें
तुम्हें सोचना ही मिलना है तुमसे

देर तक डायरी के खाली पन्ने पर
रेगतीं हूँ इधर उधर और कुछ नही लिख कर भी
मुस्कराती हूँ

मिलने बिछड़ने की सोच में भाग रहीं है सड़कें
ये लो तुमसे मिल कर बिछड़ गई
पर आँखें बंद करते ही
एक नीली नदी में डूब जायेंगे हम ..

नदियों में आई बाढ़ सा मौसम ..उतराता डूबता सा ....

.शैलजा पाठक

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