Saturday, May 25, 2013

.लेखक का एकांत _14

का खाऊ का पिऊ का ले परदेश जाऊ ....हम कितने डूब कर सुनते ये कहानी ..मुँह खोल कर ..जब कहानी जंगल से गुजरती हम अपनी मुट्ठी भींच लेते ..और जब राजकुमार आता ..हम सरक कर अम्मा के पेट से चिपक जाते ..राजकुमार 

अपने सफ़ेद घोड़े पर सवार हो धूल उडाता चला जाता ..हम आँखें मल कर उसके सुन्दर रूप को देखते ..अब कहानी में एक लड़की होती ..हम अपनी फ्राक में रखी लाइ को खाते खाते रुक जाते ..हाँ अम्मा फिर क्या ?उसकी सौतेली माँ

बहुत सताती ..बर्तन माजना ..पुरे घर का कपड़ा धोना ..भूखे सो जाना ..हमारी गौरैया सी आँखों में मोटे आंसू आ जाते ..अम्मा अपने पेट पर लेटा लेती ..सहलाती ..कहानी है बाबु ..फिर एक माली की लड़की पर राजा का मन आ गया पर लड़की का मन ?.....कौन पूछता है ...क्यों नही पूछता ?अम्मा चुप लगा जाती ..दिवार पर जाला लगा है कल साफ़ करना होगा बडबड़ाती....हम मछरदानी में घुस आये मछर मारते ...हाँ अब आगे ...फिर क्या ..अच्छा वो सात भाई वाली कहानी अम्मा ...हाँ हाँ जब सातवां भाई अपनी चिरई सी बहन को अपनी जांघ चिर कर छुपा लेता ..बाप रे .हम अपने भाई का मुंह ताकते..वो इशारे से कहता सब कहानी है ..कोई ऐसा नही करने वाला ..और हमारी चोटी खिंच लेता ...अब दूसरी कहानी में सौतेली माँ भाई बहन दोनों को कटवा कर जंगल में फेंकवा देती ...हमारी आँख बड़ी खुल जाती ...अब भाई बहन बेला चमेली बन जाते ..हम एक दुसरे के को जोर से पकडे होते ..कहानी के दुःख ने हमे दुखी किया ...प्यार ने करीब ..अम्मा किअतानी ही बातें ऐसी कह जाती जिनके अर्थ बाद में खुलने लगे ..जैसे रजवाड़े में व्याही लड़की का अकेलापन ..जैसे आम के बगीचे में भागती हवा का पिंजरा ..भाई के दूर होने दर्द ..ससुराल जाने वाली लाल चिरैया की कहानी ..कम पढ़ी लिखी अम्मा ने ही हाथ पकड़ कर क की कवायद सिखाई थी ..आम में पीला रंग भरा था ..आँखों में आकाश भी ..काले काजल का बादल भी ..संवेदना की नदी भी ...

यही माटी मे शरीर माटी होए वाला बा सबकर .... ..तुम माटी बन गई राख बन उड़ गई नदी बन बह चली कही और किसी और जगह ..पता है होगी कही ..चारो बगल बच्चों को बैठा कर ..तार काटो तरकुल काटो ..की मामा हो मामा चीटिया क झगडा ..वाला खेल खेल रही होगी ..मेरा बेटा मेरे बगल में खेल रहा है ..दिवारों पर बहुत गहरा जाला है ..या की दिख नही रहा कुछ साफ़ साफ़ ...तुम कहानी बन गई ना ...

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